Doongri Dam Protest 2025: Rajasthan Villagers Oppose Eastern Rajasthan Canal Project





Doongri Dam Protest 2025: राजस्थान के गांवों की पुकार

Doongri Dam Protest 2025: राजस्थान के गांवों की पुकार और जंगलों की आवाज़

इस आंदोलन की शुरुआत कैसे हुई?

जुलाई, 2025 में Eastern Rajasthan Canal Project (ERCP) के तहत प्रस्तावित Doongri Dam के खिलाफ प्रदर्शन तेज़ी से बढ़ा है। Banas नदी पर बनाए जाने वाले 39 मीटर ऊँचे और 1.6 किमी लंबे इस बांध पर काम शुरू हो गया था, लेकिन Sawai Madhopur और Karauli के हजारों ग्रामीण, किसानों और आदिवासी समुदायों ने इसका विरोध शुरू कर दिया।

वन-वापसी और वन्यजीवों की चिंता

Ranthambhore और Kailadevi जैसे संरक्षित क्षेत्रों में बांस नदी का जलभराव—जो 76 गांवों के लिए घर, खेती और घाटी का रास्ता रहा है—उसमें सबमर्ज हो सकता है। आंदोलनकारियों का कहना है कि यह बांध बाघ, तेंदुए, स्लॉथ भालू और लकड़बग्घों के बीच जेनेटिक कॉरिडोर को क्षति पहुंचाएगा। उन्होंने public consultation के बिना निर्णय की निंदा की।

सामाजिक आंदोलन का स्वरूप

3–4 जुलाई को महापंचायतें आयोजित हुईं, जिसमें गांव-दर-गांव लोग इकठ्ठा हुए और प्रशासन को ज्ञापन सौंपा। यदि सात दिनों में प्रतिक्रिया ना मिली, तो “रेल रोको” और हाईवे बंद जैसे बड़े आंदोलन की चेतावनी दी गई है।

क्यों हो रहा इतना विरोध?

  • आवास विस्थापन: 76 गांवों को स्थानांतरित करने की योजना है—जहाँ लोग पीढ़ियों से खेती पर आश्रित हैं।
  • शरीक जनता को नजरअंदाज करना: ग्राम पंचायत और निवासियों की राय को शामिल किए बिना environmental clearance दे दी गई।
  • जैव विविधता का क्षरण: tiger corridors के साथ-साथ स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित होंगे, इसके व्यापक प्रभाव होंगे।

ग्रामवासियों की आवाज़

एक स्थानीय किसान ने कहा, “सरकार ने हमें बताए बिना ही यह निर्णय ले लिया।” ग्रामीणों का मानना है कि यह जल-प्रबंधन का नाम पर उनकी जमीन और जंगल छीनने के समान है।

अगले कदम—क्या होगा?

प्रदर्शनकारी समूहों ने सरकार को चेताया है कि यदि समुदाय की मांगों पर सतत वार्ता नहीं हुई तो वे रेल और सड़क मार्गों पर ब्लाक करेंगे। साथ ही स्थानीय मीडिया और wildlife conservation groups ने भी इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाया है।

निष्कर्ष

Doongri Dam विरोध ने एक साधारण जल परियोजना को स्थानीय समुदाय, जंगल और जीवों के अस्तित्व की लड़ाई में बदल दिया है। यह सवाल खड़ा करता है—क्या विकास की दौड़ में प्राकृतिक धरोहर और लोगों की मिट्टी पीछे छूट जाए? समय बताएगा कि सरकार इस आह्वान को कैसे लेती है: कदम पीछे हटाएगी या संवाद की राह बनाएगी?

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